Large Freshwater Creatures Are Disappearing From India’s Rivers News In Hindi – Amar Ujala Hindi News Live


भारत की नदियों में बसने वाले ताजे पानी के विशाल जीव मछलियां, सरीसृप और स्तनधारी तेजी से गायब हो रहे हैं। ये जीव न केवल पारिस्थितिकी संतुलन के सूचक हैं, बल्कि भारत की प्राकृतिक संपदा में करीब 1.8 ट्रिलियन डॉलर का वार्षिक योगदान भी देते हैं। मगर संरक्षण की नीतियों में उनकी स्थिति बेहद कमजोर है।

यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन और वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के संयुक्त अध्ययन ने पहली बार इस संकट को वैज्ञानिक नजरिए से परखा है और चेताया है कि अगर नीतियों ने समय पर दिशा नहीं बदली, तो भारत की नदियों की जैव विविधता इतिहास बन सकती है। बायोलॉजिकल कंजर्वेशन में प्रकाशित इस अध्ययन में बताया गया है कि भारत के ताजे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र में 35 प्रमुख प्रजातियां मेगाफौना यानी विशाल जीव के रूप में दर्ज हैं। इनमें 19 मछलियां, 9 सरीसृप और 7 स्तनधारी शामिल हैं। इनमें से 51 प्रतिशत या तो गंभीर संकट में हैं या उनके अस्तित्व से जुड़ी जानकारी ही अधूरी है।

खतरे और संरक्षण की दिशा

भारत की नदियों में अब भी महाशीर, घड़ियाल, नदी डॉल्फिन और सॉफ्टशेल कछुए जैसे जीव सहअस्तित्व में पाए जाते हैं, पर उनकी संख्या तेजी से घट रही है। मुख्य खतरे हैं औद्योगिक और कृषि अपशिष्ट से जल प्रदूषण, बांधों और जलविद्युत परियोजनाओं से प्रवाह बाधित होना, जलवायु परिवर्तन से तापमान और ऑक्सीजन स्तर में गिरावट तथा अवैध शिकार और अतिक्रमण।

गंगा शार्क, सिंधु डॉल्फिन पर सबसे ज्यादा खतरा

सबसे गंभीर रूप से प्रभावित प्रजातियों में गंगा शार्क, सिंधु डॉल्फिन, गंगा नदी डॉल्फिन, और एल्ड का हिरण प्रमुख हैं। कई प्रजातियां अब अपने मूल आवास के छोटे-छोटे हिस्सों में सिमट गई हैं, जहां उनका पुनरुत्पादन भी खतरे में है। एल्ड का हिरण  जिसे वैज्ञानिक रूप से रुकर्वस इल्ली कहा जाता है,  दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में पाया जाने वाला एक दुर्लभ और सुंदर दलदली हिरण है। भारत में इसे आमतौर पर संगाई  या थामिन डियर भी कहा जाता है। यह मुख्य रूप से मणिपुर की लोकटक झील के पास के केईबुल लामजाओ राष्ट्रीय उद्यान में पाया जाता है जो दुनिया का एकमात्र तैरता हुआ (राष्ट्रीय उद्यान फ्लोटिंग नेशनल पार्क) है। भारत के बड़े जलीय जीव सबसे तेजी से गंगा, ब्रह्मपुत्र, सिंधु, और नर्मदा जैसी प्रमुख नदियों से लुप्त होते जा रहे हैं।

गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन, जो कभी एशिया की सबसे समृद्ध मीठे पानी की जैव विविधता वाला क्षेत्र माना जाता था, अब प्रदूषण, बांधो और रेत खनन के कारण गंभीर संकट में है। विशेष रूप से, गंगा नदी डॉल्फिन, घड़ियाल, और सॉफ्टशेल कछुए की आबादी उत्तर प्रदेश, बिहार और असम के हिस्सों में घटकर अब खंडित समूहों तक सीमित रह गई है। इसी तरह सिंधु नदी की डॉल्फिन अब केवल पाकिस्तान सीमा के भीतर कुछ सौ की संख्या में बची है, जबकि नर्मदा की महाशीर मछलियां लगातार घटते जल प्रवाह और अवैध मछली पकड़ने से संकट में हैं।



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