यामी गौतम ने अमर उजाला के साथ बातचीत में अपनी फिल्म ‘हक’ को लेकर कई बातें साझा कीं। यह फिल्म 1970 के दशक की उस सच्ची घटना से प्रेरित है, जब मुस्लिम महिला शाह बानो बेगम ने अपने हक और इंसाफ के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इसके अलावा अपनी निजी जिंदगी पर भी अभिनेत्री चर्चा करती दिखीं। उन्होंने बताया कि बेटे वेदविद के बाद जिंदगी कितनी और किस तरह बदली है?

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यामी गौतम
– फोटो : इंस्टाग्राम
अगर आप अपने सफर को पीछे मुड़कर देखें, तो यामी गौतम में क्या बदलाव आया है?
मुझे लगता है कि खुद को लेकर मैं अब ज्यादा सहज हो गई हूं। पहले मैं बहुत जल्दी में रहती थी। बस काम चाहिए होता था, कुछ करते रहना है। अब चीजों को समझकर, महसूस करके फैसला लेती हूं। अब मेरे लिए सिर्फ काम करना मायने नहीं रखता, बल्कि अच्छा और सच्चा काम करना मायने रखता है।
मुझे नहीं लगता कि मैं बहुत सोचती हूं, लेकिन हां, अब मेरा झुकाव सिर्फ अच्छी कहानियों की तरफ है। पहले स्क्रिप्ट ढूंढती थी, अब स्क्रिप्ट खुद मुझ तक आती हैं, और मैं कोशिश करती हूं कि सिर्फ वही प्रोजेक्ट करूं जिसमें मेरा मन लगे। मैं अब अपने काम और दर्शकों को कभी हल्के में नहीं लेती। मुझे नहीं पता आगे क्या होगा, लेकिन इतना जरूर जानती हूं कि मेहनत और सच्चाई कभी बेकार नहीं जाती। मुझे बस अपना काम करना आता है, और वो पूरी ईमानदारी से करना है। हर दिन सीखने की कोशिश करती हूं और यही इवोल्यूशन मेरे लिए सबसे बड़ी बात है … एक बेहतर इंसान और कलाकार बनना।

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यामी गौतम
– फोटो : इंस्टाग्राम
क्या कभी ऐसा समय आया जब आपको अपने हक के लिए खड़ा होना पड़ा?
मैं यह नहीं कहूंगी कि मैंने किसी से लड़ाई की, लेकिन हां, अपने हक के लिए हमेशा खड़ी रही हूं। जैसा कि मैंने कहा, मैं वही फिल्में करती हूं जिनमें दिल से यकीन हो और जिन लोगों के साथ काम करती हूं, उनका काम के प्रति नजरिया भी मेरे जैसा हो। मेरे लिए सबसे अहम चीज स्क्रिप्ट है। कई बार ऐसा होता है कि स्क्रिप्ट तुरंत नहीं मिलती या किसी बड़े नाम के साथ काम करने का मौका होता है, लेकिन मैं साफ कह देती हूं कि पहले स्क्रिप्ट चाहिए। मेरे सारे सवालों के जवाब स्क्रिप्ट में ही होते हैं। मैंने अपने आप से एक वादा किया है कि मैं कभी समझौता नहीं करूंगी। अगर कहानी और किरदार ईमानदार हैं, तभी मैं जुड़ूंगी। मेरे लिए यह मेरा असली हक है। एक कलाकार के तौर पर अपनी बात पर टिके रहना और अपने फैसले खुद लेना।

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आर्टिकल 370
– फोटो : सोशल मीडिया
क्या कभी लगा की आपको एक जैसे किरदारों के लिए ही अप्रोच करते हैं?
ऐसा कभी नहीं हुआ। एक एक्टर के अंदर कई रंग होते हैं, जैसे किसी पोस्टर में अलग-अलग शेड्स होते हैं। हर किरदार का टोन और गहराई अलग होती है। ‘आर्टिकल 370’ और ‘थर्स डे’ के रोल भले गंभीर थे, लेकिन दोनों की दुनिया और सोच अलग थी। ‘बाला’ में कॉमेडी थी, जबकि ‘धूमधाम’ में कोयल का किरदार पूरी तरह अलग एनर्जी में था। मैं उन सभी डायरेक्टर्स और प्रोड्यूसर्स की शुक्रगुजार हूं, जिन्होंने मुझ पर भरोसा किया। हर अनुभव कुछ न कुछ सिखा जाता है, चाहे अच्छा हो या मुश्किल। मेरे लिए हर स्क्रिप्ट महत्वपूर्ण होती है। मैं हर स्क्रिप्ट पढ़ती हूं, भले फिल्म करूं या नहीं। कभी-कभी फिल्म नहीं करती, लेकिन फीडबैक जरूर देती हूं ताकि बातचीत से कुछ नया निकल सके। अब मुझे ऐसे किरदार मिल रहे हैं, जो अलग-अलग रंगों के हैं। मुझे वर्सेटिलिटी पसंद है। ‘थर्स डे’ और ‘आर्टिकल 370’ दोनों में इमोशन और इंटेंसिटी अलग थी। यही विविधता मुझे एक कलाकार के तौर पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।

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यामी गौतम
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मां बनने के बाद जिंदगी में क्या बदलाव आया?
मां बनने के बाद सब बदल जाता है। दिमाग में हजार बातें चलती रहती हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि बच्चे से बढ़कर कुछ नहीं। चाहे मैं कहीं भी हूं, हमेशा मन में यही रहता है कि मुझे उसके पास जाना है। हर मां अपनी तरफ से सबसे अच्छा करती है। चाहे आप घर पर रहने वाली मां हों या कामकाजी मां, दोनों के सामने अपनी चुनौतियां होती हैं। एक मां का त्याग बहुत बड़ा होता है। मैं हर मां को दिल से सलाम करती हूं, क्योंकि मां होना सबसे सुंदर और सबसे कठिन भूमिका है।