ताजिकिस्तान का अयनी एयरबेस भारत के हाथ से निकल चुका है और इसके साथ ही मध्य एशिया में अपनी रणनीतिक पहुंच बनाने की भारत की कोशिशों को भी बड़ा धक्का लगा है। कांग्रेस पार्टी ने इसे लेकर केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला है और अयनी एयरबेस पर भारतीय संचालन खत्म होने को देश की रणनीतिक कूटनीति के लिए बड़ा झटका बताया है। गौरतलब बात ये है कि अयनी एयरबेस से भारत के निकलने के पीछे चीन और रूस का हाथ बताया जा रहा है।
रणनीतिक रूप से बेहद अहम है अयनी एयरबेस
ताजिकिस्तान का अयनी एयरबेस अफगानिस्तान, पाकिस्तान और चीन की सीमा से लगा हुआ था, जिससे भारत को एक रणनीतिक बढ़त हासिल थी। ये एयरबेस, ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे से महज 10 किलोमीटर दूर स्थित है। इस एयरबेस की मदद से भारत, पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल किए बिना मध्य एशिया तक पहुंच बना सकता था। जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया था, तो अफगानिस्तान से भारतीयों को निकालने में इसी एयरबेस की मदद ली गई थी। अयनी एयरबेस चीन के शिनजियांग प्रांत के नजदीक है। भारत और चीन के संबंधों को देखते हुए बीजिंग नहीं चाहता कि इस क्षेत्र में भारत का प्रभाव बढ़े। अयनी एयरबेस से पाकिस्तान के पेशावर शहर पहुंचना भी बहुत आसान था। इससे भारत को पाकिस्तान पर रणनीतिक बढ़त हासिल थी।
ताजिकिस्तान ने भारत की लीज बढ़ाने से कर दिया था इनकार
अयनी एयरबेस, सोवियत संघ के समय का है, जिसे साल 2002 में भारत और ताजिकिस्तान की सरकार ने मिलकर विकसित किया। इस एयरबेस की मदद से भारत भी रूस और चीन के तरह मध्य एशिया में अपना प्रभाव जमाने की रेस में शामिल हो गया था, जिससे क्षेत्र की सुरक्षा के नए समीकरण उभरे थे। भारत की योजना इस एयरबेस पर विस्तार की थी, लेकिन चार साल पहले साल 2021 में ही ताजिकिस्तान की सरकार ने भारत को संकेत दे दिए थे कि वे भारत को इसकी लीज आगे बढ़ाने के पक्ष में नहीं हैं। इसके बाद साल 2022 में भारत ने अयनी एयरबेस से अपना संचालन समेटना शुरू कर दिया था।
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क्या रूस के खेल के चलते भारत को हुआ नुकसान?
मीडिया रिपोर्ट्स में ताजिकिस्तान द्वारा भारत की लीज न बढ़ाए जाने के पीछे रूस और चीन का दबाव प्रमुख वजह माना जा रहा है। दरअसल रूस और चीन मध्य एशिया में अपना प्रभुत्व बढ़ा रहे हैं। ऐसे में वे नहीं चाहते कि इस रेस में भारत की चुनौती का उन्हें सामना करना पड़े। ताजिकिस्तान, रूस के नेतृत्व वाले कलेक्टिव सिक्योरिटी ट्रिटी ऑर्गेनाइजेशन (CSTO) का सदस्य है, जिसमें ताजिकिस्तान के अलावा कजाखस्तान, किर्गिस्तान, आर्मेनिया, बेलारूस और रूस सदस्य हैं। ताजिकिस्तान में रूस का सबसे बड़ा विदेशी सैन्य अड्डा भी है। ऐसे में ताजिकिस्तान पर रूस के प्रभाव को देखते हुए अयनी एयरबेस पर भारत की लीज को आगे न बढ़ाने के पीछे पुतिन की भी भूमिका होने की बात कही जा रही है। ताजिकिस्तान में चीन बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है। अयनी एयरबेस से भारत ने भी मध्य एशिया में पैठ बनानी शुरू कर दी थी, लेकिन अब अयनी एयरबेस हाथ से जाने के बाद रूस और चीन ही दो बड़े खिलाड़ी रह गए हैं और यह यकीनन भारत की रणनीतिक कूटनीति के लिए झटका है।