सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि चेक पर लिखी राशि और उसके बाउंस हो जाने पर जारी किए जाने वाले डिमांड नोटिस में लिखी राशि में अंतर होना नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के तहत किसी मामले के लिए घातक है। चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने कहा कि यदि चेक की राशि और डिमांड नोटिस में लिखी राशि में अंतर है, तो अधिनियम की धारा 138 के तहत सभी कार्यवाही कानूनी रूप से गलत मानी जाएंगी। इस एक्ट की धारा 138, खाते में अपर्याप्त धनराशि के कारण चेक बाउंस होने से संबंधित है।
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पीठ ने कहा, पहले दिए गए फैसलों और अदालत से प्रतिपादित सिद्धांतों से, कानून की यह स्थिति उभरती है कि बाउंस हुए चेक द्वारा कवर की गई राशि के भुगतान की मांग करने वाला नोटिस, एनआई अधिनियम की धारा 138 के तहत अपराध के मुख्य घटकों में से एक है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, यह अनिवार्य है कि वैधानिक नोटिस में मांग बाउंस चेक की राशि के बराबर होनी चाहिए।
दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को दी गई चुनौती
पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली अपीलों पर अपना फैसला सुनाया जिसमें एनआई एक्ट के तहत एक आपराधिक शिकायत को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि नोटिस में उल्लिखित राशि चेक में दर्शाई गई राशि के समान नहीं थी। पीठ ने अपील खारिज करते हुए कहा, शिकायत एक करोड़ रुपये के चेक के अनादर से संबंधित थी। बाद में, दो नोटिसों में, शिकायतकर्ता ने राशि दो करोड़ रुपये बताई।
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सुप्रीम कोर्ट के सामने क्या दिया गया तर्क
सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष यह तर्क दिया गया कि नोटिस में अलग राशि का उल्लेख करने में शिकायतकर्ता ने मुद्रण की त्रुटि की थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि अधिनियम की धारा 138 के प्रावधान (बी) के तहत जारी किए जाने वाले नोटिस में उसी राशि का उल्लेख होना चाहिए जिसके लिए चेक जारी किया गया था। उपरोक्त संबंध में विफलता, होने पर ऐसा नोटिस कानून की दृष्टि में अमान्य माना जाएगा।