अगर स्लीपर बस में आराम से रात का सफर करने की सोच रहे हैं तो सावधान हो जाएं। बस चालक-परिचालकों की लापरवाही यात्रा को आखिरी सफर में बदल सकती है। जिन स्लीपर बसों में सवारियों को बैठाकर सुरक्षित ले जाने की जिम्मेदारी होती है, उनसे सामान भी ढोया जा रहा है। इतना ही नहीं, आखिरी सीट पर बनी आपातकालीन खिड़की सिर्फ शो-पीस बनी है। यात्रियों को भी इसकी जानकारी नहीं होती। हादसा होने पर बसों में लदे सामान की वजह से आग भीषण हो जाती है और यात्रियों की जान बचना मुश्किल हो जाता है।
मथुरा में मंगलवार तड़के घने कोहरे में यमुना एक्सप्रेस-वे के 127 किलोमीटर माइल स्टोन के पास भीषण हादसा हुआ। इसमें 11 डबल डेकर बसें, एक रोडवेज और तीन कार एक के बाद एक आपस में टकरा गईं। हादसे में कई लोगों की माैत हो गई, जबकि 100 से अधिक यात्री गंभीर रूप से घायल हो गए। इस घटना के बाद हर दिन सामान्य, एसी और स्लीपर बसों में सफर करने वाले यात्रियों की सुरक्षा सवालों के घेरे में है।
अमर उजाला की टीम ने आगरा के नामनेर इलाके में खड़ी निजी बसों की पड़ताल की। इसमें सामने आया कि दिल्ली, राजस्थान और उत्तराखंड सहित अन्य रूटों पर चलने वाली लंबी दूरी की बसों में सुरक्षा के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हो रही है। 30 स्लीपर सीट वाली बस में 50 सवारियां तक बैठाई जाती हैं। रात में इन बसों में सवारियों के बैठने से पहले छत और निचली डिकी में सामान भर दिया जाता है। इस कारण बस में यात्री कम, सामान का वजन अधिक होता है। एक ट्रेवल एजेंट ने बताया कि माल का भाड़ा अलग लिया जाता है। यात्री का किराया अलग होता है। यात्री का सामान सीट के पास ही रखवा दिया जाता है।
अमर उजाला की टीम ने बस में आपातकालीन खिड़की और रास्ते के बारे में जानकारी की। एक चालक ने बताया कि हर बस में एक आपातकालीन खिड़की होती है। यह सबसे पीछे की सीट पर बनाई जाती है। अगर कोई बस हादसे का शिकार हो जाए या उसमें आग लग जाए तो इस खिड़की को खोला जाता है, मगर इस सीट के बारे में कभी कोई चालक-परिचालक किसी भी यात्री को नहीं बताता। इस खिड़की से भी निकल पाना आसान नहीं है। यह आम बसों की तरह खुल भी नहीं पाते हैं। इस वजह से लोग आसानी से बाहर नहीं आ पाते। चिंता की बात यह है कि पुलिस, आरटीओ और जीएसटी अधिकारी भी चेकिंग कर सिर्फ खानापूर्ति करते हैं।
चालान की भी होती है कार्रवाई
एआरटीओ प्रशासन आलोक अग्रवाल ने बताया कि बसों को चेक किया जाता है। जिन बसों में यात्रियों के सामान के अलावा अलग से माल रखा हुआ मिलता है, उनके खिलाफ चालान की कार्रवाई की जाती है। सामान्य दिनों में यात्रियों की संख्या अधिक होने पर भी चालान काटे जाते हैं। आरटीओ की टीम के साथ जीएसटी की टीम भी रहती है, जिससे माल के कागजात भी चेक किए जा सकें।
यात्रियों के सामान के नाम पर ले जा रहे माल
सूत्रों की मानें तो बसों में माल की ढुलाई यूं ही नहीं हो रही है। माल के पकड़े जाने पर चालक एक ही बात बोलते हैं कि यह सामान यात्री का है। इन दिनों अधिकतर बसों में ऑनलाइन बुकिंग होती है। बस में अलग-अलग स्थान से सवारियों को बैठाया जाता है। अधिकारी भी बसों की देरी का बहाना बनाकर पल्ला झाड़ रहे हैं।
हर दो साल में फिटनेस की जांच
एआरटीओ सत्येंद्र सिंह ने बताया कि आरटीओ आगरा में 126 स्लीपर बसें पंजीकृत हैं। एक स्लीपर बस में अधिकतम 30 सीट हो सकती हैं। नियमानुसार, बसों में एक आपातकालीन रास्ता सबसे पीछे, एक साइड में होता है। इसके अलावा, चालक वाली सीट के पास भी एक खिड़की को आपात समय में इस्तेमाल किया जाता है। चढ़ने वाले रास्ते से भी निकला जा सकता है। आठ साल तक बस की हर दो साल में फिटनेस होती है। इसमें यह देखा जाता है कि आपातकालीन खिड़की खुल रही है या नहीं। जितनी सीटें नई बस में थीं, उतनी ही फिटनेस के समय हैं या नहीं। सीट की संख्या बढ़ा तो नहीं दी गई। हार्न, लाइट काम कर रहे हैं या नहीं। आठ साल से अधिक होने पर प्रत्येक साल फिटनेस चेक की जाती है। \