इंदौर देश का सबसे साफ शहर है। यहां की आबो हवा ठीक है, लेकिन पानी? वो तो जहरीला हो रहा है। भागीरथपुरा बस्ती में नलों में जहरीला पानी बहा और आठ लोगों को अपनी जान गंवाना पड़ी। गंदे पानी की समस्या शहर के कई हिस्सों में है, लेकिन निगम के अफसरों को जागने के लिए लोगों की मौत का इंतजार रहता है। हैरानी की बात है कि नर्मदा पाइप लाइन पर शौचालय बन गया और उसका पानी पेयजल लाइन में मिलता है। मौत ने अभी भागीरथपुरा का पता देखा है, लेकिन शहर के और भी इलाके हैं, जहां बरसों पुरानी लाइनों में धीरे-धीरे ये जहरीला पानी बह रहा है। आखिर पाइप लाइन पर कैसे शौचालय बन गया? जिम्मेदार अफसरों ने तब क्यों ध्यान नहीं दिया? पुरानी शिकायतों पर सुनवाई क्यों नहीं हुई? जिम्मेदार कौन है? पेश है ये खास रिपोर्ट…
भागीरथपुरा शहर की अवैध बस्तियों में शुमार है। 50 साल पहले यहां संतराम और सुखराम के भट्ठे होते थे। भट्ठे बंद हुए और भूमाफिया ने प्लॉट बेचना शुरू कर दिए। 1975 के आसपास यहां बसाहट शुरू हुई। न ड्रेनेज लाइन बिछी थी न पानी का पता। घनी बसाहट हो गई और लोग ‘वोटबैंक’ बन गए तो चुनाव जीतने वालों ने काम शुरू किए, लेकिन कोई प्लानिंग नहीं की। बेकलेन थी नहीं तो सड़क के आसपास ही नर्मदा और ड्रेनेज लाइन डाल दी गई।
एक सप्ताह से होने लगी थीं मौतें
भागीरथपुरा में गंदे पानी की समस्या सालभर से है। यहां की लाइनें 30 साल से ज्यादा पुरानी हैं और कमजोर हो चुकी हैं। भागीरपुरा से जुड़ा नगर निगम का जोन शिकायतों में शहर में दूसरे स्थान पर है। दो माह में सबसे ज्यादा गंदे पानी की शिकायतें मिलीं, लेकिन अफसरों ने ध्यान नहीं दिया। महापौर परिषद ने भागीरथपुरा बस्ती की लाइन बदलने के लिए अगस्त माह में मंजूरी दी थी, लेकिन अपर आयुक्त रोहित सिसोनिया ने फाइल आगे ही नहीं बढ़ाई। बस्ती में ड्रेनेज की मुख्य लाइन डाल दी गई, लेकिन उससे जोड़ने वाली पुरानी लाइनें अब तक नहीं डाली गईं। सरकार ने भी बड़े अफसरों को लापरवाही की सजा देने के बजाय जोनल अधिकारी शालिग्राम सितोले, सहायक यंत्री योगेश जोशी को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया, जबकि पीएचई के प्रभारी उपयंत्री शुभम श्रीवास्तव की तत्काल प्रभाव से सेवा समाप्त की गई है। गंदे पानी के कारण एक सप्ताह से यहां मौतें होने लगी थीं। मरीज भी दस दिन से बड़ी संख्या में सामने आने लगे थे।