Justice Surya Kant Historical Decisions: भारत के आगामी CJI, जिनके 10 ऐतिहासिक फैसलों ने हिलाई राजनीति | Justice Surya Kant Historical Decisions: Know Future CJI and His 10 Impactful Rulings News Hindi


India

oi-Divyansh Rastogi


Justice
Surya
Kant
Historical
Decisions:

सुप्रीम
कोर्ट
में
सियासी
भूचाल
लाने
वाले
फैसलों
के
लिए
मशहूर
जस्टिस
सूर्यकांत
अब
भारत
के
अगले
मुख्य
न्यायाधीश
(CJI)
बनने
की
कगार
पर
हैं।
मौजूदा
CJI
जस्टिस
बीआर
गवई
के
23
नवंबर
2025
को
रिटायरमेंट
के
बाद
24
नवंबर
को
जस्टिस
सूर्यकांत
शपथ
लेंगे
और
फरवरी
2027
तक
देश
की
न्यायिक
कमान
संभालेंगे।
हरियाणा
के
छोटे
से
शहर
हिसार
के
साधारण
परिवार
से
निकले
इस
जज
ने
मेहनत
और
ईमानदारी
से

सिर्फ
सुप्रीम
कोर्ट
का
रास्ता
तय
किया,
बल्कि
उनके
10
बड़े
फैसलों
ने
केंद्र-राज्य
सरकारों
के
बीच
तीखी
बहस
छेड़
दी।

अनुच्छेद
370
से
लेकर
पेगासस
जासूसी,
OROP
योजना,
AMU
के
अल्पसंख्यक
दर्जे,
PM
सिक्योरिटी
चूक,
प्रोफेसर
महमूदाबाद
की
अंतरिम
जमानत,
भूमि
अधिग्रहण
के
‘बेल्टिंग
मेथड’,
सोशल
मीडिया
पर
फ्री
स्पीच,
महिला
सरपंच
की
बहाली,
और
बैर
एसोसिएशन
में
महिलाओं
के
लिए
33%
आरक्षण-इन
फैसलों
ने
राजनीतिक
हलचल
मचा
दी।
आखिर
कौन
हैं
ये
जस्टिस
सूर्यकांत,
जिनका
कार्यकाल
न्यायिक
इतिहास
में
नया
अध्याय
लिख
सकता
है?

आइए,
उनके
10
फैसलों
पर
डालते
हैं
नजर,
जो
देश
की
सियासत
को
दिशा
देने
वाले
साबित
हुए…

Justice Surya Kant Historical Decisions

Justice
Surya
Kant
Profile:
हिसार
की
मिट्टी
से
सुप्रीम
कोर्ट
तक:
जस्टिस
सूर्यकांत
की
प्रेरणा
सोर्स

10
फरवरी
1962
को
हरियाणा
के
हिसार
जिले
के
पेटवार
गांव
में
एक
मध्यमवर्गीय
परिवार
में
जन्मे
जस्टिस
सूर्यकांत
ने
कभी
कल्पना
भी

की
होगी
कि
वो
हरियाणा
के
पहले
CJI
बनेंगे।
1981
में
हिसार
के
गवर्नमेंट
पोस्ट
ग्रेजुएट
कॉलेज
से
ग्रेजुएशन
करने
के
बाद,
1984
में
महर्षि
दयानंद
यूनिवर्सिटी,
रोहतक
से
लॉ
की
डिग्री
ली।
उसी
साल
हिसार
जिला
कोर्ट
में
वकालत
शुरू
की,
लेकिन
1985
में
पंजाब-हरियाणा
हाईकोर्ट
चले
गए।
संवैधानिक,
सिविल
और
सर्विस
मामलों
में
महारत
हासिल
करने
वाले
सूर्यकांत
कई
यूनिवर्सिटी,
बोर्ड
और
बैंकों
के
लीगल
एडवाइजर
बने।
उनकी
काबिलियत
देखते
हुए
हरियाणा
सरकार
ने
उन्हें
एडवोकेट
जनरल
बनाया।

2004
में
पंजाब-हरियाणा
हाईकोर्ट
के
जज
बने,
जहां
उन्होंने
जेल
रिफॉर्म्स
और
जेंडर
जस्टिस
पर
लैंडमार्क
फैसले
दिए।
2018
में
हिमाचल
प्रदेश
हाईकोर्ट
के
चीफ
जस्टिस
बने।
24
मई
2019
को
सुप्रीम
कोर्ट
पहुंचे।
यहां
300
से
ज्यादा
बेंच
पर
बैठे,
1000
से
अधिक
फैसलों
में
योगदान
दिया।
2024
से
सुप्रीम
कोर्ट
लीगल
सर्विसेज
कमिटी
के
चेयरमैन
और
नेशनल
लीगल
सर्विसेज
अथॉरिटी
(NALSA)
के
एग्जीक्यूटिव
चेयरमैन
हैं।
मई
2025
में
NALSA
चेयरमैन
बने।
उनका
कार्यकाल
सामाजिक
न्याय,
मानवाधिकार
और
प्रशासनिक
सुधारों
पर
फोकस
करता
दिखता
है।
जस्टिस
सूर्यकांत
का
सफर
मेहनत
का
प्रतीक
है-
एक
ऐसे
जज
जो
‘सोशल
एम्पैथी’
और
‘कॉन्स्टिट्यूशनल
क्लैरिटी’
का
बैलेंस
रखते
हैं।

Justice
Surya
Kant
10
Impactful
Rulings:
सियासी
हलचल
के
सूत्रधार,
जो
बदल
देंगे
देश
की
दिशा

जस्टिस
सूर्यकांत
के
फैसले

सिर्फ
कानूनी
किताबों
में
दर्ज
हैं,
बल्कि
उन्होंने
राजनीतिक
बहसों
को
नई
ऊंचाई
दी।
यहां
उनके
10
प्रमुख
फैसलों
की
झलक,
जो
केंद्र-राज्यों
के
बीच
तनाव
बढ़ाने
और
सामाजिक
बदलाव
लाने
वाले
साबित
हुए:-


  • अनुच्छेद
    370
    हटाने
    का
    समर्थन
    (दिसंबर
    2023):

    पांच
    जजों
    की
    संविधान
    पीठ
    का
    हिस्सा
    रहे
    जस्टिस
    सूर्यकांत
    ने
    जम्मू-कश्मीर
    को
    विशेष
    दर्जा
    देने
    वाले
    अनुच्छेद
    370
    को
    खत्म
    करने
    के
    केंद्र
    के
    फैसले
    को
    वैध
    ठहराया।
    इस
    फैसले
    ने
    विपक्षी
    दलों
    में
    भारी
    हंगामा
    मचाया
    और
    संघीय
    ढांचे
    पर
    बहस
    छेड़
    दी।
  • PM
    सिक्योरिटी
    चूक
    जांच
    समिति
    (2022):

    नरेंद्र
    मोदी
    की
    पंजाब
    यात्रा
    के
    दौरान
    हुई
    सुरक्षा
    लापरवाही
    पर
    जस्टिस
    इंदु
    मल्होत्रा
    की
    अगुवाई
    वाली
    बेंच
    में
    शामिल
    होकर
    पांच
    सदस्यीय
    जांच
    समिति
    गठित
    की।
    इससे
    केंद्र
    और
    पंजाब
    सरकार
    के
    बीच
    सियासी
    जंग
    तेज
    हो
    गई,
    और
    ‘फेडरल
    सिक्योरिटी’
    मुद्दा
    गरमाया।

  • OROP
    योजना
    को
    वैध
    ठहराया:

    सशस्त्र
    बलों
    के
    लिए
    ‘वन
    रैंक
    वन
    पेंशन’
    योजना
    को
    संवैधानिक
    करार
    दिया।
    साथ
    ही,
    महिलाओं
    को
    सेना
    में
    स्थायी
    कमीशन
    के
    बराबर
    मौके
    देने
    पर
    सुनवाई
    की,
    जिसने
    लैंगिक
    समानता
    को
    बढ़ावा
    दिया
    और
    वीर
    नारियों
    के
    अधिकारों
    पर
    चर्चा
    छेड़ी।

  • AMU
    के
    अल्पसंख्यक
    दर्जे
    पर
    पुनर्विचार
    (2024):

    सात
    जजों
    की
    बेंच
    में
    हिस्सा
    लेकर
    1967
    के
    फैसले
    को
    पलट
    दिया।
    1981
    के
    दो
    जजों
    के
    रेफरल
    को
    ‘बैड
    इन
    लॉ’
    बताते
    हुए
    चीफ
    जस्टिस
    के
    बेंच
    रोस्टर
    अधिकार
    पर
    जोर
    दिया।
    इससे
    शैक्षणिक
    संस्थानों
    के
    दर्जे
    पर
    नई
    सियासी
    बहस
    शुरू
    हुई।

  • पेगासस
    जासूसी
    मामले
    में
    सख्त
    रुख
    (2021):

    पेगासस
    स्पाइवेयर
    जांच
    वाली
    बेंच
    में
    शामिल
    होकर
    साइबर
    एक्सपर्ट
    कमिटी
    गठित
    की।
    ‘नेशनल
    सिक्योरिटी’
    के
    नाम
    पर
    मनमानी

    करने
    का
    आदेश
    दिया,
    जिसने
    प्राइवेसी
    राइट्स
    पर
    देशव्यापी
    डिबेट
    छेड़ी
    और
    विपक्ष
    ने
    इसे
    ‘सरकारी
    जासूसी’
    का
    सबूत
    बताया।

  • प्रोफेसर
    अली
    खान
    महमूदाबाद
    को
    अंतरिम
    जमानत
    (21
    मई
    2025):

    हजरियाना
    पुलिस
    द्वारा
    सोशल
    मीडिया
    पोस्ट
    (ऑपरेशन
    सिंदूर)
    पर
    गिरफ्तारी
    के
    खिलाफ
    जस्टिस
    एन.
    कोटेश्वर
    सिंह
    के
    साथ
    बेंच
    ने
    अंतरिम
    जमानत
    दी।
    लेकिन
    पासपोर्ट
    जमा
    और
    सोशल
    मीडिया
    पर
    सख्त
    शर्तें
    लगाईं।
    कोर्ट
    की
    ‘हम
    जानते
    हैं
    कैसे
    डील
    करें’
    वाली
    भाषा
    ने
    अभिव्यक्ति
    स्वतंत्रता
    पर
    विवाद
    खड़ा
    कर
    दिया।

  • भूमि
    अधिग्रहण
    ‘बेल्टिंग
    मेथड’
    को
    मान्यता
    (2025):

    राष्ट्रीय
    राजमार्ग
    के
    आसपास
    जमीन
    के
    मूल्यांकन
    में
    ‘प्रॉक्सिमिटी
    प्रीमियम’
    को
    वैध
    ठहराया।
    इससे
    मुआवजे
    में
    पारदर्शिता
    आई,
    लेकिन
    आलोचकों
    ने
    छोटे
    किसानों
    को
    नुकसान
    का
    हवाला
    देकर
    सियासी
    हमला
    बोला।

  • सोशल
    मीडिया
    पर
    फ्री
    स्पीच
    केस
    (2025):

    बेंच
    ने
    ऑनलाइन
    टिप्पणियों
    पर
    ‘कॉशन
    एंड
    रेस्ट्रेंट’
    का
    आदेश
    दिया।
    ‘हिडन
    मीनिंग’
    वाली
    पोस्ट्स
    को
    शांति
    भंग
    मानते
    हुए
    अभिव्यक्ति
    पर
    अंकुश
    लगाया,
    जिसे
    विपक्ष
    ने
    ‘सेंसरशिप’
    करार
    दिया।

  • महिला
    सरपंच
    की
    बहाली
    और
    जेंडर
    बायस
    पर
    चेतावनी:

    पंचायती
    राज
    में
    एक
    महिला
    सरपंच
    को
    गलत
    तरीके
    से
    हटाए
    जाने
    पर
    बहाल
    किया।
    जेंडर
    बायस
    को
    नकारा,
    जिसने
    ग्रामीण
    लोकतंत्र
    और
    महिलाओं
    के
    अधिकारों
    पर
    नई
    बहस
    छेड़ी।

  • बैर
    एसोसिएशन
    में
    महिलाओं
    के
    लिए
    33%
    आरक्षण
    (2025):

    सुप्रीम
    कोर्ट
    बैर
    एसोसिएशन
    सहित
    सभी
    बार
    में
    महिलाओं
    को
    एक-तिहाई
    सीटें
    आरक्षित
    करने
    का
    ऐतिहासिक
    आदेश
    दिया।
    इससे
    लीगल
    फील्ड
    में
    जेंडर
    इक्वालिटी
    को
    झटका
    लगा,
    और
    राजनीतिक
    दलों
    ने
    इसे
    ‘महिला
    सशक्तिकरण’
    का
    समर्थन
    किया।

क्यों
खास
हैं
जस्टिस
सूर्यकांत?
न्यायिक
क्रांति
के
नए
दौर
का
संकेत

जस्टिस
सूर्यकांत
सिर्फ
एक
जज
नहीं,
बल्कि
सामाजिक
बदलाव
के
सेतु
हैं।
उनके
फैसले
मानवाधिकार,
जेंडर
जस्टिस,
जेल
रिफॉर्म्स
(जैसे
कैदियों
को
कंजुगल
विजिट्स),
और
पर्यावरण
(चार
धाम
प्रोजेक्ट
में
सेफगार्ड्स)
पर
फोकस
करते
हैं।
80
से
ज्यादा
जजमेंट्स
लिखे,
1000
से
अधिक
में
योगदान।

CJI
बनते
ही
हरियाणा
को
पहला
CJI
मिलेगा।
उनका
15
महीने
का
कार्यकाल
संवेदनशील
मुद्दों-
जैसे
CAA,
इलेक्टोरल
बॉन्ड्स,
और
मेंटल
हेल्थ
डिस्क्रिमिनेशन-
पर
नई
दिशा
दे
सकता
है।
क्या
ये
फैसले
सुप्रीम
कोर्ट
को
और
मजबूत
बनाएंगे,
या
सियासी
तनाव
बढ़ाएंगे?
वक्त
ही
बताएगा,
लेकिन
जस्टिस
सूर्यकांत
का
आगमन
न्याय
व्यवस्था
के
लिए
उम्मीद
की
किरण
है।


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