बेल्जियम की सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को जारी आदेश में भारत के प्रत्यर्पण अनुरोध के खिलाफ भगोड़े हीरा व्यापारी मेहुल चोकसी की अपील को खारिज कर दिया। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत के इस विचार का समर्थन किया है कि भारत में न्याय से वंचित किए जाने, यातना या अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार के मेहुल चोकसी के दावों का कोई आधार नहीं है।
मेहुल चोकसी पर 104 यूरो का जुर्माना लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि चोकसी की ओर से पेश किए गए दस्तावेज़ यह साबित करने के लिए नाकाफी थे कि उसे न्याय से खुलेआम वंचित किए जाने या यातना या अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार का गंभीर खतरा है।
न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक चोकसी ने अपने तर्कों को एंटीगुआ से कथित अपहरण के प्रयास के अपने दावों, इंटरपोल की फाइलों के नियंत्रण आयोग (सीसीएफ) की ओर से कथित घटना पर लिए गए दृष्टिकोण, मीडिया कवरेज के आधार पर भारत में निष्पक्ष सुनवाई न मिलने की संभावना पर आधारित किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने चोकसी की अपील के आधार पर नवंबर 2022 में इंटरपोल रेड नोटिस सूची से उसका नाम हटा दिया था। सीसीएफ इंटरपोल का एक स्वतंत्र निकाय है जो इंटरपोल सचिवालय के नियंत्रण में नहीं है। इसमें मुख्य रूप से विभिन्न देशों के निर्वाचित वकील कार्यरत हैं, जहां लोग उन्हें भगोड़ा घोषित करने के निर्णयों को चुनौती दे सकते हैं।
चोकसी के एंटीगुआ से उसके अपहरण के प्रयास पर सीसीएफ के निष्कर्षों से संबंधित जानकारी को छिपाए जाने के तर्क को बेल्जियम की सर्वोच्च अदालत से भी समर्थन नहीं मिला। सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि मुंबई की एक विशेष अदालत की ओर से मई 2018 और जून 2021 में जारी किए गए गिरफ्तारी वारंट को लागू करने योग्य करार देने का फैसला सही था।
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को भी उचित ठहराया कि प्रत्यर्पण अधिनियम 1874 के अनुच्छेद 2ए, पैराग्राफ 2 (संभावित यातना पर) के तहत अस्वीकृति के आधार कानून के अनुसार लागू नहीं होते हैं। पीएनबी में 13,000 करोड़ रुपये के घोटाले का पता चलने से कुछ दिन पहले मेहुल चोकसी जनवरी 2018 के पहले हफ्ते में भारत से भाग गया था। सीबीआई और ईडी के अनुरोध पर, इंटरपोल ने दिसंबर 2018 में उसका नाम रेड नोटिस नामक सबसे वांछित भगोड़ों की सूची में शामिल किया था।
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