भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए वर्ष 2026 एक अत्यंत महत्वपूर्ण मोड़ साबित होने वाला है। दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में भारत एक ऐसे ‘गोल्डिलॉक्स’ चरण में प्रवेश कर रहा है, जहां मजबूत वृद्धि दर और नरम महंगाई का दुर्लभ मेल दिख सकता है। हालांकि, घरेलू मोर्चे पर मजबूती के बावजूद वैश्विक व्यापार में तनाव और मुद्रा बाजार की अस्थिरता 2026 में नीति निर्माताओं के लिए मुख्य चुनौती बनी रहेगी।
क्या है ‘गोल्डीलॉक्स इकोनॉमी’ का मतलब?
आर्थिक शब्दावली में ‘गोल्डीलॉक्स इकोनॉमी’ उस आदर्श स्थिति को कहते हैं जो न तो बहुत अधिक गर्म (बहुत ज्यादा महंगाई) होती है और न ही बहुत ठंडी (मंदी या सुस्ती)। यानी एक ऐसी अर्थव्यवस्था जहाँ आर्थिक विकास की गति स्थिर बनी रहती है, बेरोजगारी कम होती है और महंगाई नियंत्रण में रहती है। साल 2026 के लिए जो अनुमान लगाए जा रहे हैं- जैसे कि 3.5% की रिटेल महंगाई और स्थिर जीडीपी विकास दर- वे संकेत देते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था वर्तमान में इसी ‘गोल्डीलॉक्स’ जोन में है। यह मध्यम वर्ग के लिए सबसे सुखद स्थिति होती है क्योंकि यहां न तो ब्याज दरों के अचानक बढ़ने का डर होता है और न ही आय कम होने का जोखिम।
2026 में विकास की रफ्तार के क्या मायने?
2025-26 की दूसरी तिमाही में भारत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत तक पहुंच गई, इस आंकड़ने भारत को जापान से आगे निकालकर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना दिया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 4.18 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ भारत अब अगले 2.5 से 3 वर्षों में जर्मनी को पीछे छोड़कर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है। अनुमान है कि 2030 तक भारत की जीडीपी 7.3 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगी।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए अपने विकास अनुमान को 6.8 प्रतिशत से बढ़ाकर 7.3 प्रतिशत कर दिया है। वर्ल्ड बैंक, आईएमएफ (IMF) और मूडीज जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने भी इस सकारात्मक दृष्टिकोण की पुष्टि की है।

बजट 2026 में सुधारों का एजेंडा कैसा रहेगा?
फरवरी में पेश होने वाले आगामी केंद्रीय बजट से उद्योगों और आम जनता को काफी उम्मीदें हैं। सरकार का ध्यान मुख्य रूप से ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ और ‘ईज ऑफ लिविंग’ पर केंद्रित रहने की उम्मीद है।
सरकार से आने वाले वाले साल में कई बड़े कदमों की रहेगी उम्मीद। जानकार मानते हैं कि अर्थव्यवस्था में निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए सरकार को पूंजीगत व्यय यानी कैपेक्स में निवेश और बढ़ाना चाहिए। सरकार से नई श्रम संहिताओं (लेबर कोड्स) का पूर्ण कार्यान्वयन और जीएसटी दरों में और अधिक तर्कसंगत सुधार की भी उम्मीद रहेगी। केंद्र ने राष्ट्रीय खातों के आधार वर्ष को 2011-12 से बदलकर 2022-23 करने की भी तैयारी कर ली है, इससे जीडीपी गणना की सटीकता बढ़ेगी।
वैश्विक निवेश और कॉरपोरेट विस्तार की क्या तैयारी?
भारत की विकास गाथा में वैश्विक कंपनियों का भरोसा बना हुआ है। माइक्रोसॉफ्ट (2030 तक 17.5 बिलियन डॉलर), अमेजन (अगले 5 वर्षों में 35 बिलियन डॉलर) और गूगल (15 बिलियन डॉलर) जैसे दिग्गजों ने बड़े निवेश की घोषणा की है। इसके अतिरिक्त, एप्पल, सैमसंग और आर्सेलर मित्तल निप्पॉन स्टील जैसी कंपनियां अपनी विस्तार योजनाओं को गति दे रही हैं।
रुपय की साख बचाना और अमेरिका से ट्रेड डील क्यों जरूरी?
आर्थिक मजबूती के बीच, भारतीय रुपया 2026 में भी दबाव में रहने के संकेत दे रहा है। वर्ष 2025 में रुपये ने डॉलर के मुकाबले 91 का ऐतिहासिक निचला स्तर देखा। अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा घोषित पारस्परिक टैरिफ के कारण विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने भारतीय बाजार से बड़े पैमाने पर निकासी की है।
रुपये में गिरावट को थामने की चुनौती कैसे हल होगी?
विशेषज्ञों के अनुसार, मौजूदा मुद्रा संकट मुख्य रूप से गिरते पूंजी प्रवाह (FDI) और अस्थिर पोर्टफोलियो प्रवाह के कारण है। कोटक सिक्योरिटीज और एचडीएफसी सिक्योरिटीज के विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका के साथ प्रस्तावित व्यापार समझौता निर्यात को बढ़ावा दे सकता है, लेकिन यह रुपये की गिरावट रोकने के लिए ‘रामबाण’ साबित नहीं होगा। अल्पकालिक अवधि में रुपया 92-93 के स्तर तक जा सकता है, लेकिन अप्रैल 2026 के बाद वैश्विक पूंजी के पुनर्गठन और डॉलर की संभावित कमजोरी से रुपया 83-84 के स्तर तक मजबूत हो सकता है।
2026 के लिए आर्थिक विशेषज्ञ क्या कह रहे?
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस का कहना है कि मजबूत घरेलू अर्थव्यवस्था और निर्यात विविधीकरण ने भारत को टैरिफ युद्ध के बावजूद लचीला बनाए रखा है। वहीं, इक्रा (ICRA) की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने अनुमान जताया है कि वित्त वर्ष 2027 में विकास दर 6.5 से 7 प्रतिशत के बीच रहेगी, जबकि मुद्रास्फीति 4 प्रतिशत के आरामदायक स्तर पर बनी रह सकती है।
क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री धर्मकीर्ति जोशी ने चेतावनी दी है कि भारत पर वैश्विक चुनौतियों का असर कम है, लेकिन अमेरिका के मनमाने टैरिफ का असर विदेशी निवेशकों की धारणा पर असर डालना जारी रख सकता है।
भारती एक्सा लाइफ इंश्योरेंस के नितिन मेहता ने 2025 के सुधारों को बीएफएसआई (BFSI) क्षेत्र के लिए एक क्रांतिकारी कदम बताया है। उनके अनुसार, 100% एफडीआई और ‘बीमा सुगम’ जैसी पहलों ने बीमा क्षेत्र में पूंजी और पहुंच की दोहरी चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान किया है। मेहता का मानना है कि बैंकिंग कानूनों में संशोधन, विशेष रूप से नामांकित व्यक्तियों (nominees) की लचीली व्यवस्था और जोखिम-आधारित जमा प्रीमियम, ग्राहक सुरक्षा और भरोसे को मजबूत करते हैं। भारती एक्सा अपनी ‘फिजिटल’ (Phygital) रणनीति के माध्यम से पार्टनर्स को ‘जोखिम सलाहकार’ के रूप में सशक्त बना रही है, ताकि 2047 तक ‘सभी के लिए बीमा’ के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।
मुथूट फिनकॉर्प के सीईओ शाजी वर्गीस ने एनबीएफसी और गोल्ड लोन क्षेत्र में आए सकारात्मक बदलावों पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में क्रेडिट सामान्यीकरण के बाद अब यह सेक्टर विकास के चरण में प्रवेश कर चुका है। वर्गीस के अनुसार, गोल्ड लोन के लिए लागू किए गए संतुलित नियमों और ब्याज दरों में हुई 125 आधार अंकों की कटौती ने समाज के अंतिम पायदान तक ऋण की पहुंच और सामर्थ्य को बढ़ाया है। उन्होंने उम्मीद जताई कि 1 अप्रैल 2026 से प्रभावी होने वाले नए नियम उद्योग में अधिक पारदर्शिता और स्थिरता लाएंगे, जिससे गोल्ड लोन अब केवल आपातकालीन ऋण न रहकर निवेश और व्यवसाय वृद्धि का एक प्रमुख माध्यम बन जाएगा।
एंजेल वन एएमसी के हेमेन भाटिया ने निवेश के बदलते स्वरूप पर चर्चा करते हुए कहा कि 2026 की ओर बढ़ते हुए ‘पैसिव इन्वेस्टिंग’ अब पोर्टफोलियो की रीढ़ बन गई है। उन्होंने आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि पैसिव निवेश के तहत प्रबंधित संपत्ति (AUM) 2019 के 1.9 लाख करोड़ रुपये से सात गुना बढ़कर 2025 में 13.7 लाख करोड़ रुपये हो गई है। भाटिया के अनुसार, भारत में पैसिव शेयर फिलहाल 17% है, जो वैश्विक रुझानों और अमेरिका (जहां यह 50% से अधिक है) की तुलना में भविष्य के लिए विकास की अपार संभावनाओं को दर्शाता है। निवेशकों के बीच कम लागत वाली और नियम-आधारित रणनीतियों की बढ़ती लोकप्रियता 2026 में भी जारी रहने की उम्मीद है।
कुल मिलाकर 2026 में आर्थिक मोर्चे पर क्या खास?
कुल मिलाकर, वर्ष 2026 भारत के लिए अवसरों और चुनौतियों का मिला-जुला वर्ष होगा। जहां एक ओर ‘गोल्डिलॉक्स’ चरण आर्थिक महाशक्ति बनने की नींव मजबूत करेगा, वहीं दूसरी ओर वैश्विक भू-राजनीतिक अनिश्चितता और मुद्रा बाजार की उठापटक भारत की निर्णय क्षमता की परीक्षा लेगी। आने वाले समय में औपचारिक क्षेत्र में रोजगार सृजन और व्यापार समझौतों को धरातल पर उतारना भारत की निरंतर प्रगति के लिए निर्णायक होगा।