Surekha Yadav Asia First Female Loco Pilot Journey Ends Will Retire After 36 Years Of Service – Amar Ujala Hindi News Live


भारतीय रेलवे के इतिहास में एक नया अध्याय लिखने वाली और एशिया की पहली महिला लोको पायलट सुरेखा यादव इस माह के अंत तक सेवानिवृत्त हो रही हैं। 36 साल की लंबी और गौरवशाली सेवा के बाद सुरेखा की विदाई हो रही है। रेलवे अधिकारियों के मुताबिक यह यात्रा सिर्फ करियर की नहीं, बल्कि महिला सशक्तिकरण का भी प्रतीक रही है।

साल 1989 में भारतीय रेलवे से जुड़ी सुरेखा अगले ही वर्ष सहायक चालक बनीं। इसी के साथ उन्होंने इतिहास रचा और एशिया की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर बनीं। उस समय यह क्षेत्र पूरी तरह पुरुष प्रधान माना जाता था। लेकिन सुरेखा ने साबित कर दिया कि संकल्प और मेहनत के सामने कोई बाधा टिक नहीं सकती।

सतारा की बेटी से रेलवे की शान तक

महाराष्ट्र के सतारा जिले में जन्मी सुरेखा ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने के बाद रेलवे जॉइन किया। शुरुआत से ही उन्होंने अपने काम से यह जताया कि वे अलग राह बनाने आई हैं। धीरे-धीरे वे इस क्षेत्र में पहचान बनाने लगीं और कई नई जिम्मेदारियां संभालती चली गईं।

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मालगाड़ी से मोटरवुमन और घाट ड्राइवर तक

सुरेखा ने 1996 में पहली बार मालगाड़ी चलाई। साल 2000 में उन्हें प्रमोशन मिला और वे मोटरवुमन बनीं। दस साल बाद उन्होंने घाट ड्राइवर के तौर पर क्वालिफाई किया और मेल व एक्सप्रेस ट्रेनें चलाने लगीं। इस तरह उनका करियर लगातार ऊंचाइयों की तरफ बढ़ता गया।

वंदे भारत चलाने का गौरव

13 मार्च 2023 को सुरेखा ने एक और ऐतिहासिक काम किया। उन्होंने सोलापुर से मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस तक पहली वंदे भारत एक्सप्रेस चलाई। यह उनके लिए ही नहीं, पूरे रेलवे परिवार के लिए गर्व का पल था।

राजधनी एक्सप्रेस से अंतिम सफर

रेलवे की परंपरा के तहत सुरेखा ने अपनी आखिरी जिम्मेदारी राजधनी एक्सप्रेस चलाकर पूरी की। उन्होंने हजरत निजामुद्दीन (दिल्ली) से सीएसएमटी मुंबई के बीच इगतपुरी से सीएसएमटी तक ट्रेन चलाई। अधिकारियों ने कहा कि यह विदाई उनकी गौरवशाली सेवाओं को सम्मान देने का प्रतीक है।

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महिला सशक्तिकरण की मिसाल

केंद्रीय रेलवे ने एक्स पर लिखा कि सुरेखा यादव, एशिया की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर, 30 सितंबर को 36 साल की शानदार सेवा के बाद रिटायर होंगी। उन्होंने बाधाएं तोड़ीं, महिलाओं को प्रेरित किया और दिखाया कि कोई भी सपना अधूरा नहीं।

सुरेखा का करियर सिर्फ व्यक्तिगत सफलता की कहानी नहीं, बल्कि समाज और रेलवे में बदलाव का संदेश है। वे उन लाखों महिलाओं के लिए मिसाल बनीं जो परंपरागत सीमाओं से बाहर निकलना चाहती हैं।



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