‘अब डर लग रहा है… वापस जाना ही ठीक है’
खुलना जिले की रहने वाली शाहिन बीबी अपने छोटे बच्चे के साथ सड़क किनारे इंतजार कर रही थीं। वो न्यू टाउन, कोलकाता में घरों में काम करके 20,000 रुपये महीना कमाती थीं। उन्होंने साफ कहा, ‘हम गरीबी के कारण आए थे। दस्तावेज ठीक नहीं थे। अब जांच हो रही है, इसलिए लौटना ही बेहतर लग रहा है।’ कई लोग मानते हैं कि उन्होंने आधार, राशन कार्ड या वोटर आईडी जैसे कागज दलाल और बिचौलियों के जरिए बनवाए थे। एसआईआर में इन पुराने कागजों की दोबारा जांच हो रही है, इसलिए लोग पूछताछ और हिरासत से बचने के लिए खुद ही सीमा पर आ पहुंचे हैं। एक युवा वेटर बोला, ‘आठ साल रह लिया। अगर पुराने कागज मांगे तो क्या दिखाएंगे? जाने में ही भलाई है।’
कतार तंबू बन गई, सड़क इंतजारगाह
बीएसएफ अधिकारियों के मुताबिक, हर दिन 150–200 लोग पकड़े जा रहे हैं और जांच के बाद उन्हें ‘वापस भेजा’ जा रहा है। 4 नवंबर, यानी एसआईआर शुरू होने के बाद से ही भीड़ बढ़नी शुरू हो गई। सभी लोगों के बायोमैट्रिक डेटा लेकर पुलिस और प्रशासन को भेजा जाता है। भीड़ ज्यादा होने पर दो-तीन दिन तक इंतजार करना पड़ रहा है। गेट के अंदर बीएसएफ खाना दे रहा है। बाहर इंतजार कर रहे लोग सड़क किनारे चाय-ढाबों पर निर्भर हैं। 40 रुपये में चावल-अंडा और 60 रुपये में चावल-मछली मिल रहा है।
‘कागज बनवाने में 20000 रुपये लगे थे…अब सब बेकार’
ढुलागोरी की फैक्टरी में काम करने वाले 29 वर्षीय मनीरुल शेख बताते हैं, ‘हमने 5,000 से 7,000 रुपये देकर भारत में एंट्री ली थी। लेकिन कागज बनवाने में 20,000 रुपये तक खर्च हो गया। अब एसआईआर की जांच से सब डर गए हैं।’ इमरान गाजी नाम के एक व्यक्ति ने बताया कि, ‘मैंने 2016, 2019, 2021 और 2024- चार बार वोट दिया है। पर 2002 का कोई असली कागज नहीं। इसलिए लौट रहा हूं।’ वहीं एक पुलिस अधिकारी का कहना था, ‘दो दिन में 95 लोग आए थे। हमारे पास इतनी जगह ही नहीं है। बाद में हमने हिरासत लेना बंद कर दिया।’
